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मैं खुद को ढूंढ रहा हूं…

मन के दरवाजे खोल जो बोलना है बोल
मन के दरवाजे खोल जो बोलना है बोल
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sumit-walking-aloneमैं खुद को ढूंढ रहा हूँ,

कौन हूं मैं, क्यां हूं मैं,

ये खुद से पूछ रहा हूँ,

मैं खुद को ढूंढ रहा हूँ…।

आँखों में सपने लिए

घर से निकल पड़ा हूँ,

कहां हैं मेरी राहें, कहां हैं मेरी मंजिल

अपने वजूद को ढूंढ रहा हूँ,

अनसुलझे प्रश्न हैं कई

उनके उत्तर ढूंढ रहा हूँ,

मै खुद को ढूंढ रहा हूं…।

भीड़ से खुद को कैसे अलग दिखाऊं,

जीवन की दौड़ में कहीं पिछड़ न जाऊं,

अपने अंर्तद्वंद्व से लड़ रहा हूँ,

मैं खुद को ढूंढ रहा हूँ…।

हारा हूँ कई बार पर कमजोर नहीं हुआ,

लाख गलतियां की हैं पर अफसोस नहीं हुआ,

बस अब हर कदम पर जीतने की चाह है,

वही मेरी मंजिल वही मेरी राह है,

चाहत को इरादा बनाया है,

कमजोरी को ताकत बनाया है,

पूरे हुए अरमां, मिल गई मंजिल,

अब नई मंजिल के लिए निकल पड़ा हूँ

नई राहें हैं, नई मंजिल हैं,

पर प्रश्न अब भी है वही,

कौन हूँ मैं, क्या हूँ मैं,

ये खुद से पूछ रहा हूँ,

खुद को ढूंढ रहा हूँ,

मैं खुद को ढूंढ रहा हूँ…

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