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मैं एक भारतीय हूं और हिंदी मेरी राष्ट्रभाषा है। मुझे हिंदी भाषा अतिप्रिय है मगर मैं अंग्रेजी भाषा को साष्ट्रांग दंडवत प्रणाम करना चाहता हूं। इसका अर्थ यह कतई नहीं कि हिंदी भाषा के प्रति मेरा प्रेम कम हुआ हैं लेकिन जिस तरह अंग्रेजी ने इतने कम समय में हजारों साल पुरानी हिंदी भाषा को पछाड़ते हुए भारतीयों के मन मस्तिष्क पर प्रभाव जमाया वह विचारणीय है। आखिर क्या कारण है कि अंग्रेजी भाषा आगे निकल गई है और राष्ट्रभाषा हिन्दी को दोयम दर्जे का माना जा रहा है। मैं अपनी शिक्षा अंग्रेजी माध्यम से ही पूरा कर रहा हूं लेकिन मैंने सदा अंग्रेजी भाषा को मजबूरी की भाषा ही माना है। चूंकि आज अंग्रेजी वैश्विक भाषा बन गई है अतः आज के परिवेश के अनुसार मजबूरीवश अंग्रेजी सीखना ही पड़ता है। किंतु मैंने हमेशा हिंदी का ही प्रयोग किया है, हां जहां आवश्यकता होती है वहां अंग्रेजी का प्रयोग करता हूं। अंग्रेजी को लोगों ने प्रतिष्ठा की भाषा बना ली है और राष्ट्रभाषा को कचरे के डिब्बे में फेंक दिया है। ऐसी मानसिकता बन गई है कि जो अंग्रेजी में बोलता हो वह अपडेटड, संभ्रांत, ज्ञानी और जो हिंदी बोलता हो वह पिछड़ा हुआ। मैं यहां किसी भाषा विशेष का विरोध नहीं कर रहा हूं बल्कि मेरा विरोध उस मानसिकता से है जो राष्ट्रभाषा हिन्दी को पिछड़ा बना रही है।
कुछ दिनों की पहले की बात बताता हूं। स्कूलों में एडमिशन चल रहा है। मेरे पड़ोस में रहने वाले अंकल अपने बच्चे का अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में दाखिला कराया। आकर अपने मित्र जिन्होंने अपने बच्चे का हिन्दी मीडियम के स्कूल में दाखिला कराया था उसे बताने लगे कि उन्होंने अपने बच्चे का इंग्गिश मीडियम में दाखिला कराया है। ‘इंग्लिश’ शब्द पर वे कुछ ज्यादा ही जोर डाल रहा था, शायद यह जताने की कोशिश कर रहे थे कि अपने बेटे का इंग्लिश मीडियम में दाखिला कराने से उनकी नाक ऊंची हो गई हो। मेरे पहचान के एक चाचाजी ने कुछ महीनों पहले अपने घर में अंग्रेजी अखबार लगवाया हालांकि उन्हें अंग्रेजी पढ़ना नहीं आता था लेकिन वे शायद यह जताना चाह रहे थे कि देखिए हमारे यहां भी अंग्रेजी अखबार आता है, हम भी प्रतिष्ठित और संभ्रांत लोगों की श्रेणी में आते हैं। मैं इसी मानसिकता की बात करा रहा हूं। आप बशर्ते अन्य भाषाएं उपयोग करें, उसे सर-माथे बिठाएं लेकिन अपनी राष्ट्रभाषा को कम से कम ऐसे तो न दुत्कारें। अंग्रेजी पूरी दुनिया में बोली जाती है चाहे वो चीन हो, रूस हो, यूरोपीय देश, अमेरिकन देश या फिर कोई और देश, इन सबने अंग्रेजी को अपनाया जरूर लेकिन अपनी राष्ट्रभाषा की गरिमा को बनाए रखा। ये लोग अपनी राष्ट्रभाषा बोलने में शर्म महसूस नहीं करते। चीन में लोग चीनी भाषा में ही बात करते हैं, स्पेन में स्पैनिश में, फ्रांस में फ्रेंच आदि।
दरअसल बात यह है कि हमें शुरू से ही पाश्चात्य संस्कृति से बहुत प्रभावित रहे हैं और उन्हीं का अनुकरण करना चाहते हैं। उन्हीं की तरह बोलना, उन्हीं की तरह खाना, उन्हीं की तरह पहना-रहना इत्यादि। हम उसे वैसे का वैसा ही अपनाने लगते हैं बिना उसको अपने देश के अनुरूप ढाले। कपड़ों की तरह बात करें तो ज्यादातर फैशन पश्चिम से ही प्रेरित है। खाने की बात ही क्या है- पिज्जा, बर्गर, सैंडविच ने समोसे, कचोरी, इडली, जलेबियों, ढोकले को ओवरटेक कर लिया है। रेस्त्रां जाने पर लोग पिज्जा या सैंडविच आर्डर करने में ही अपनी प्रतिष्ठा समझते हैं जबकि ये बात वो भी बखूबी जानते हैं कि समोसे, कचौरियों के आगे ब्रेड के बीच सब्जी-भाजी डालकर परोसे गए व्यंजन जिसे हम “सैंडविच” कहते हैं का स्वाद कुछ भी नहीं। रही बात सेहत कि तो एक हेल्थ रिपोर्ट में यह साफ कहा गया था कि बर्गर, पिज्जा जैसे वेस्टर्न फास्टफूड सेहत के लिए ज्यादाहानिकारक हैं बनिस्बत इंडियन फास्टफूड के। मगर अगर रेस्त्रां में अगर समोसा आर्डर किया तो हम पिछड़े कहलाएंगे और पिछड़ा कौन कहलाना चाहता है। नृत्य की बात करें तो हिपहॉप, क्रंपिंग, सालसा जैसी पाश्चात्य नृत्य शैलियां कब का भरतनाट्यम, कुचीपुड़ी, ओडीसी पर हावी हैं। टीवी पर आने वाले किसी भी डांस शो को देख लीजिए साफ पता चल जाएगा कि लोगों का रूझान किस तरफ है। दोष इसी मानसिकता का है। इसी मानसिकता ने हिन्दी को अपने ही देश में पिछड़ा बना दिया है।
अंग्रेजी भाषा लोगों को कितनी प्रिय है इसका एक और वाकया बताता हूं। लोगों को अगर हिन्दी में गालियां दे दो तो उनका खून खौल उठता है लेकिन अगर अंग्रेजी में दो तो उनका सीना दो इंच फूल जाता है। मेरा एक मित्र है जो हमेशा बेवजह अंग्रेजी झाड़ता रहता है। एक दिन मैंने उसे गुस्से में कहा- “अरे बेवकूफ। इधर आ।” इतना सुनते ही वो मुझे काटने के लिए दौड़ पड़ा। लेकिन कुछ देर बाद जब मैंने उसे कहा अग्रेजी में कहा- “Stupid! Come here.” तो उसकी प्रतिक्रिया देखने लायक थी। उसने कुछ नहीं कहा बल्कि चुपचाप मेरे पास आ गया जैसे मैं उसे कोई पद्मश्री अवार्ड देने वाला हूं। आज की युवा पीढ़ी खासतौर पर अंग्रेजी की बहुत दीवानी बहुत दीवानी है। “Hey Dude”, “Wassup”, “Yo! man”, “Shit”, “Damn it”, “F**k off” ये सब आज की पीढ़ी के पसंदीदा जुमले हैं। हिन्दी में इन्हें बोलने बोला जाए तो ये मुंह बिचकाने लगते हैं और अंग्रेजी में इनको आप गालियां दे दो ये लोग खुशी-खुशी ग्रहण कर लेंगे जैसे गालियां नहीं फूलों की मालाएं बरस रही हो।
दुःख होता है जब राष्ट्रभाषा हिन्दी की इतनी दुर्गति होती है। जब देशवासी ही हिन्दी का सम्मान नहीं कर रहे हों तो हम बाहर वालों से क्या उम्मीद करेंगे। हम आजाद भले ही हों लेकिन हम अब भी गुलाम मानसिकता के कारण पश्चिमी सभ्यता को भारतीय सभ्यता के ऊपर रखते हैं। हमें अब इस गुलाम मानसिकता से बाहर आना होगा। भारतीय सभ्यता और हिन्दी भाषा को उसकी गरिमा फिर से लौटानी होगी। हम बेशक पाश्चात्य सभ्यता एवं बदले वक्त के अनुसार वैश्विक सभ्यता को आत्मसात करें लेकिन साथ ही साथ अपने अंदर के भारतीय को सदा जीवित रखें और अपने राष्ट्र का सम्मान करें। बहुत लोग से ऐसे लोग जो राष्ट्रगान एवं राष्ट्रीय गीत बजने पर भी सावधान की मुद्रा में खड़े नहीं होते क्योंकि लोग को शर्म लगती है कि कहीं उन्हें देशभक्त न समझ लिया जाए।क्या देशभक्त होना आउट आफ फैशन हो गया है। हम खुद अपने देश का सम्मान करेंगे तभी विश्व हमारा सम्मान करेगा। क्या आप सच्चे भारतीय है?
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